Saturday, April 4, 2020

भारत में महिलाओ की सुरक्षा --एक महत्त्वपूर्ण सवाल ?

भारत में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं और विश्व स्तर पर हम जनसंख्या में दुसरे स्थान पर हैं। हमारी संस्कृति को कई सारी विभिन्न संस्कृतियों के समावेश के रूप में देखा जाता है |

हमारा देश धार्मिक,राजनीतिक और सांस्कृतिक विचारों से भरा हुआ है इसीलिए यहाँ लोगों के लालन - पालन में एक अकेली विचारधारा न होकर आपको इन सभी का मिश्रण मिलेगा |

आप जब संपूर्ण भारत का भ्रमण करेंगे ,आपको यहाँ भूमि ,प्रकृति, लोग ,जनजातियां ,व्यंजन ,नृत्य .विभिन्न  वर्ण,विचारधारा ,संगीत, आध्यातम ,शिल्पकला, खेल, इतिहास आदि में विविधता दिखेगी जो व्हीशवें भर मोइन अपने आप में आलौकिक है |

भारत में पदानुक्रमित समाज का चलन है फिर वो चाहे उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत, हिंदू हो या मुस्लिम, शहरी हो या ग्रामीण लोग या फिर एक सामाजिक समूह सब कुछ उनके गुणों के अनुसार क्रमबद्ध हैं।

भारत में शिक्षा का इतिहास, भारतीय धर्मों, भारतीय गणित, प्रारंभिक हिंदू और बौद्ध केंद्रों के बीच शुरू हुआ | तक्षशिला (आधुनिक पाकिस्तान में) और नालंदा (भारत में) शिक्षा के केंद्र हुआ करते थे.
हालांकि भारत एक राजनीतिक और लोकतान्त्रिक देश है लेकिन आज भी यहाँ पूर्ण समानता की धारणा हमारे दैनिक जीवन में कभी स्पष्ट नहीं हो पाई है

समूहों में जातिवाद,व्यक्ति विशेष और पारिवारवाद में आज भी सामाजिक श्रेणी निर्विवाद है। हमारे यहाँ अलग अलग धर्म जैसे हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जैन का वास है जिनमें खासकर हिन्दू धर्म में जातिवाद सबसे ज्यादा झलकता है . ये एक विवादरूपी कथन है लेकिन इसके साथ ये एक सत्या भी है | हिन्दुओं के अलावा बाकी धर्मों में भी अलग अलग श्रेणियां और जाति समूह मौजूद है|

अधिकांश गांवों या कस्बों के भीतर प्रत्येक स्थानीय रूप से प्रतिनिधित्व वाली जाति सबसे ऊपर होती है और हमारा व्यवहार भी उनसे ही प्रेरित होता है |

भारतीय जीवन को उजागर करने वाले महान विषयों में से एक सामाजिक अंतर्संबंध पर आधारित है। लोग समूहों में पैदा होते हैं- परिवार, वंश, उपजातियां, जातियां और धार्मिक समुदाय और इन समूहों से अविभाज्यता की गहरी भावना महसूस करते हैं।

लोग दूसरों के साथ गहराई से जुड़े हैं, और कई लोगों के लिए, सबसे बड़ा डर सामाजिक समर्थन के बिना अकेले रहना है |

जब आप भारत के विभिन्न राज्यों को देखेंगे तो आप समझेंगे की एक राज्य से दूसरे राज्य की कई चीज़ें अलग अलग है शायद अत्यधिक आबादी वाले देश होने की वजह से और इसी वजह से भारत में अपराध की तरफ यहाँ के कई लोगों का झुकाव बहुत ज्यादा है |


1990 के युग से लेकर 2020 तक नियमित अपराधों के अलावा, हम कई सांप्रदायिक और धार्मिक स्थितियों से गुजरे जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। डकैती, मर्डर जैसे पारंपरिक अपराधों का प्रतिमान कम होता गया और हॉनर किलिंग,बाल यौन उत्पीड़न और रेप के मामले बढ़ते गए |
  
जब मैं इस पर अध्धयन कर रहा था तो मुझे पता लगा की भारत में बलात्कार के मामलो ने सारी हदें पार कर दी है और सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2017 में बलात्कार के 32500 से अधिक मामले दर्ज़ हुए औसतन प्रति दिन लगभग 90 मामले दर्ज किए गए।
निर्भया और आसिफा जैसे कुछ बेहद क्रूर और उजागर मामलों के बाद भी भारतीय अदालतें उस वर्ष बलात्कार से संबंधित केवल 18300 मामलों का निपटारा कर पाई,जिससे 2017 के अंत में 127800 से अधिक मामले लंबित हो गए।

A Small Report on the India Rape statistics

इस आर्टिकल को लिखते वक़्त मैंने कुछ तथ्यों और आंकड़ों को समझने की कोशिश की है जिनकी वजह से रेप और बाल यौन उत्पीड़न जैसे मामलों को बढ़ावा मिल रहा है.

आइये इस पर रौशनी डालते है 
मनोवैज्ञानिक

मनोचिकित्सा की एक भारतीय पत्रिका के अनुसार, एक शोध पत्र ,एक छोटे से मस्तिष्क विश्लेषण के साथ प्रकाशित किया गया था जिसमे बलात्कार कार्बनिक मस्तिष्क की क्षति और उसके सीखने की विकलांगता से जुड़ा हो सकता है ।

सिज़ोफ्रेनिया या संबंधित मनोविकृति वाले लोग अक्सर बलात्कार कर सकते हैं या असामान्य यौन व्यवहार दिखा सकते हैं, जो या तो सीधे मनोविकार से जुड़ा होता है या अप्रत्यक्ष रूप से विघटन-अवरोधक होता है।

पैराफिलिया की कम से कम 6 महीने की समयावधि, तीव्र यौन उत्तेजित कल्पनाएं, या विशिष्ट पैराफिलिक व्यवहार से संबंधित यौन आग्रह, यौन आग्रह की कल्पनाएं या व्यवहार आपकी  सामाजिक, व्यावसायिक कामकाज में संकट या हानि का कारण बनती हैं।

एक शोध के अनुसार, बलात्कार करने वाले पुरुष अपने युवा होने की शुरुवाती सालों में किसी से सम्बन्ध स्थापित कर लेते है जिसे वो जानते है |

वही दूसरी तरफ कुछ लोग एक या दो यौन हमले करते हैं और फिर रुक जाते हैं और बाकी लोग इस व्यवहार को बनाए रखते हैं या फिर हिंसक रूप में परिवर्तित होकर तेज गति से इस जगण्य अपराध को आगे बढ़ाते रहते है |



लालन - पालन

विकिपीडिया के शोध के अनुसार, पारंपरिक भारतीय परिवार अपने बच्चों को ज्यादातर विशिष्ट अमेरिकी परिवारों की तुलना में अधिक आक्रामक और कड़े तरीके से अनुशासित करते हैं।

बड़ों का सम्मान इस तरह का एक महत्वपूर्ण घटक है और उनका अनादर करने से कठोर तरीके से दंडित किया जाता है।कुछ परिवारों में, बच्चों को शायद ही कभी प्यार किया जाता है या किसी भी तरह की शैतानियां करने की अनुमति दी जाती है |

कई भारतीय परिवारों में पालन-पोषण के लिए हल्के शारीरिक दंड को एक सामान्य पहलू माना जाता है।

बच्चों का वो बचपन जो उनके व्यक्तित्व को बनाने में एक एहम भूमिका निभाता है अगर उसे उस समय  शारीरिक हिंसा या यौन हिंसा देखने मिलता है तो वो भावनात्मक रूप से हतोत्साहित रहते है और दुर्लभ संसाधनों के लिए हमेशा प्रतिस्पर्धा करते हैं |

पुरुषों में यौन रूप का आक्रामक व्यवहार, पारिवारिक हिंसा को देखने और भावनात्मक रूप से परिवार से दूर होने और माता-पिता की उपेक्षा करने से जुड़ा रहता है |

पितृ सत्तात्मक संरचनाओं वाले परिवारों में पले-बढ़े लोग ज्यादा हिंसक होते है उनके अंदर हिंसा का भाव , बलात्कार करने और महिलाओं के साथ धमकी भरा आचरण करने की प्राथमिकता होती है |

टेलीविजन

दिसंबर 2012 में, एक 23 वर्षीय लड़की, जो एक मेडिकल छात्रा थी जिसका दिल्ली में एक बस में सामूहिक बलात्कार किया गया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना की दुनिया भर में कड़ी निंदा हुई और हमारे देश में राष्ट्रव्यापी क्रांति का आवाहन हुआ बॉलीवुड के सबसे बड़े सितारों में से एक, शाहरुख खान ने  ट्वीट करके कहा: "मुझे बहुत खेद है कि मैं इस समाज और संस्कृति का हिस्सा हूं। मुझे बहुत दुख है कि मैं एक आदमी हूं।

अगर हम टेलीविज़न से शुरुआत करते हैं तो याद करने की कोशिश कीजिये कि हमने एक मजबूत महिला चरित्र को कहाँ और कितनी बार देखा है जो खलनायक से लड़ती है और खुद को बचाती है।

याद नहीं होगा?

क्योंकि हमने सर्वाधिक एक महिला किरदार को फिल्मो में पुरुषों के साथ परेशानी में देखा है और अधिकांश बार वो पुरुष उस महिला के साथ बलात्कार करना चाहते हैं।

हालांकि, ये हमेशा बहस का विषय रहेगा कि मनोरंजन किसी को किसी भी तरह से कैसे प्रभावित कर सकता है क्योंकि हर किसी की अपनी एक सोच, जीवन शैली और धारणाएं हैं।

लोगो का यह तर्क भी है यह एक काल्पनिक दुनिया है जिसमें नाटक,हाव भाव,प्रेम,रोमांच सभी का मिश्रण है और हमें इस पर विश्वास नहीं करना चाहिए लेकिन मनुष्य का मस्तिष्क रचनात्मक और हानिकारक होता है ,यह व्यक्ति के आत्म-शिक्षण और उसके चारों ओर के वातावरण पर निर्भर करता है की वो इससे कितना प्रभावित होता है |


 टेलीविजन ने भी इस अपराध को महिमामंडित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी बीबीसी के एक लेख के अनुसार, तथाकथित 'आइटम नंबर' जो बेहद लोकप्रिय हैं,उन्हें कुछ इस तरह कोरियोग्राफ किया जाता है जो अक्सर यौन उत्तेजना से भरपूर होते है और ये बॉलीवुड फिल्मों में नियमित रूप से दिखाई देते हैं।

तो सवाल ये है की

क्या यह फिल्म को किसी भी तरह के निष्कर्ष की ओर ले जाता है?

किसी भी फिल्म की सफलता में उनका क्या योगदान है?

फिर इस बात पर बहस होगी कि इस धरती पर हर इंसान के मनोरंजन के अपने तरीके होते है और इसीलिए हर इंसान अपनी जरूरत के हिसाब से खुद का मनोरंजन करता है |

फिल्म जगत इसलिए हर इंसान के हिसाब से इसके लिए कंटेंट बनता है।

अगर हम भारतीय सिनेमा में महिलाओं के चित्रण पर ध्यान दे तो टेलीविजन ने हमेशा एक महिला को एक गैर-संतुलित चरित्र में चित्रित किया है, जहां या तो वह असहाय है और हमेशा किसी के मदद की अपेक्षा कर रही है या फिर उसे एक सुंदर,आकर्षक और सजावटी वास्तु की तरह प्रस्तुत किया जाता है इसलिए टेलीविजन किसी को मनुष्य को प्रभावित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है |

डिजिटल मीडिया और इंटरनेट

पंद्रह वर्षीय ऑड्री पोट एक पार्टी में नशे में थी और उसके परिवार के अनुसार, आगे जो हुआ, वह यह था कि कई युवा छात्रों ने उसका यौन उत्पीड़न किया ,उसके फोटो खींचे और उसे अपने हाई स्कूल में प्रचलित कर दिए .लंबे समय के बाद, दुखी और निराश मन से ऑड्री पोट ने आत्महत्या कर ली

भारत में अंतहीन घटनाएं होती हैं जहां डिजिटल सामग्री और इंटरनेट इस तरह की आपदा को जन्म देते हैं।



सोशल मीडिया और इंटरनेट लोगों को अलग अलग तरह की डिजिटल सामग्री बनाने की छूट देता है फिर चाहे वो संवेदनशील या निषेद हो. इंटरनेट फ़ायरवॉल ऐसे चीज़ों को रोकने में सक्षम है लेकिन इसकी पहुंच पर सम्पूर्ण नियंत्रण कहीं नहीं है।

पोर्न का आकर्षण मीडिया और इंटरनेट की वजह से बढ़ा है एक व्यक्तिगत शोध के अनुसार, पोर्नोग्राफी का प्रभाव बलात्कार, घरेलू हिंसा, यौन रोग, यौन संबंधों के साथ कठिनाइयों और बाल यौन शोषण जैसे मामलों में साफ़ झलकता है कई देशों ने नाबालिगों तक इसकी पहुंच को प्रतिबंधित करने का प्रयास किया जा रहा है और कुछ जगह इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है।

कमजोर भारतीय न्यायिक प्रणाली

जब आप भारत में महिला सुरक्षा के बारे में बात करते हैं, तो हमारी न्यायिक प्रणाली बहुत कमजोर और असंगठित है।

2012
के निर्भया मामले ने कानूनी और नीतिगत सुधारों की मेजबानी को नयी गति दी। 2013 में, संसद ने एक नया बलात्कार विरोधी अधिनियम पारित किया, जिसने महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित प्रावधानों को और अधिक कठोर बनाने के लिए प्रमुख कानूनों में संशोधन किया। निर्भया की घटना पर लोग बहुत आक्रोशित हुए और तत्कालीन सरकार की बहुत आलोचना हुई।

भारतीय न्यायिक प्रणाली में बलात्कार और बाल यौन शोषण के लिए आईपीसी की धारा 375 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) अधिनियम है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार 2018 में 1,56,237 मामले ट्रायल पर थे।



परीक्षण 17,313 मामलों पर पूरा हुआ, जिसके परिणामस्वरूप केवल 4,708 मामलों में सजा हुई। बलात्कार के 11,133 मामलों में बरी हुआ और 1472 मामलों में डिस्चार्ज हुआ।

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक बीएन गंगाधर के अनुसार, “चोरी या अन्य अपराधों जैसे हत्या की तुलना में बलात्कार एक विलक्षण कृत्य है और इसे अपराधी के उम्र के आधार पर इसका आंकलन नहीं किया जाना चाहिए।

जब एक इंसान में सफल शारीरिक उत्तेजना होती है वह उसी वक़्त उस दायरे में जाता है लेकिन हमारे समाज में 18-साल से कम उम्र के लोगों को किशोरवस्था में गिना जाता है.

हमे किशोरावस्था के इस उम्र के इस दायरे को बदलना होगा और इस पर एक कठोर निर्णय लेना होगा.

एक इंसान में शारीरिक उत्तेजना 18 या 16 साल की उम्र से बहुत पहले शुरू होती है और जबकि उत्तेजना एक प्राकृतिक घटना है और इस समय पर संयम धारण करना बहुत जरूरी होता है और ये एक जिम्मेदारी भी है इसीलिए हमे उम्र को फिर से परिभाषित करना बेहद जरूरी है |

महिला सशक्तिकरण समूह सहेली से वाणी सुब्रमण्यन ने कहा कि निर्भया एक पृथक घटना नहीं है।

इस देश में भयावह नियमितता के साथ यौन हमले होते है। हमें इन अपराधों के लिए सख्त कानून की आवश्य्कता है जो इनको करने वाले पुरुषों के लिए सच्चे निवारक के रूप में कार्य करेगा

कम सजा दर से पता चलता है कि यौन हिंसा के अपराधियों को दंड मुक्ति बड़ी आसानी से मिल जाती है |

नए कानूनों ने बलात्कार की परिभाषा का विस्तार किया और इसमें संशोधन करके इसमें महिलाओं का पीछा करना, जासूसी करना और एसिड अटैक जैसी गतिविधायों को भी जोड़ा गया है |

मार्च 2014 में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने यौन हमले के पीड़ितों के लिए चिकित्सा और कानूनी प्रोटोकॉल के मानकीकरण के लिए दिशानिर्देश जारी किए जिसमें यौन उत्पीड़न के शिकार लोगों को मुफ्त चिकित्सा और उन्हें वित्तीय और कानूनी सहायता प्रदान करने का प्रावधान शामिल किया गया है |

हालांकि,विशेषज्ञों ने कानूनी मापदंडो और दिशानिर्देशों में बहुत सी खामियों को उजागर किया जिनकी वजह से लोग उनके अधिकारों का  उचित इस्तेमाल नहीं कर पा रहे है |

इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स में एक रिपोर्ट में ये बताया गया है की "धन के खराब उपयोग, संस्थानों के सुदृढ़ीकरण के स्थान पर प्रोद्योगीकरण करने और कानूनी प्रावधानों में विरोधाभास" की वजह से अभी भी भारत में यौन हमले को संबोधित करना एक चुनौती है

भारत सरकार की पहल


केंद्र ने निर्भया फंड के तहत विभिन्न महिला सुरक्षा परियोजनाओं के लिए लगभग 4,000 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं, जिसमें बलात्कार और एसिड अटैक पीड़ितों को वित्तीय सहायता और महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष पुलिस इकाइयों की स्थापना शामिल है।

गृह मंत्रालय के एक दस्तावेज के अनुसार ,आठ शहर जिसमे दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, बेंगलुरु, अहमदाबाद और लखनऊ शामिल है इनमें  'सेफ सिटी प्रोजेक्ट' के तहत सबसे अधिक 2,919.55 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं।

निर्भया सुरक्षित शहर की परियोजनाओं में महिला की सुरक्षा का ध्यान रखा गया है ।अपराध को नियंत्रित करने और अपराधियों की पहचान करने के लिए फॉरेंसिक, प्रोएक्टिव पुलिसिंग और विभिन्न अपराध विश्लेषण जैसे समाधानों का इस्तेमाल किया जाएगा

यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए महिलाओं के लिए विशेष रूप से शी व्हीकल, शी ऑटो सर्विसेज, शी कैब्स आदि की शुरुआत की है।

हालांकि, इन सभी के अलावा हमारे पास अभी भी किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए एक विश्वसनीय या पारिस्थितिकी तंत्र नहीं है।

अकेले कानून इस समस्या का हल नहीं दे सकते। पिछले एक दशक में, रिपोर्टिंग में वृद्धि हुई है, बलात्कार के मामलों में एफआईआर पंजीकरण अनिवार्य किया गया है मगर पीड़ित के बयान की चिकित्सा जांच और रिकॉर्डिंग के लिए लिंग-संवेदनशील प्रोटोकॉल में आज भी कई बाधाएं है |


आइये हम कुछ विशेषज्ञों से जाने जिन्होंने बलात्कार को रोकने के बारे अपने विचार रखे है


बलात्कार के बारे में अपने दृष्टिकोण को संवर्धित करें

कोई भी इस बात से असहमत नहीं हो सकता है कि बलात्कार गलत है |

शब्दों ,कार्यों और निष्क्रियता के माध्यम से, यौन हिंसा और यौन उत्पीड़न को सामान्यीकृत बनाया गया है और हम कुछ दिन इसके बारे में चर्चा करते है और फिर उसे अपनी दैनिक ज़िन्दगी में भूल जाते है |

समय और पृष्ठभूमि के साथ, बलात्कार ने एक संस्कृति (Rape Culture ) का  रूप ले लिया हैं। बलात्कार एक महिला पर हमला करने वाले पुरुष की संकीर्ण धारणा से परे हो चूका है क्योंकि वह रात में अकेले चलती है।

हमारे यहाँ कुछ सामाजिक कुरूतियों का बदलना अब बेहद जरूरी हो चूका है जैसे की

लड़के तो आखिर लड़के होते है, अब गलती तो इन्ही से होती है, इसमें नया क्या है |

वह नशे में थी |

इनकी ना का मतलब हाँ होता है |

बलात्कार अब एक क्रूर रूप धारण कर चूका है जिसमें महिला जननांग विकृति, उनको ज़िंदा जलाने और निर्दय हत्या की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है.


अगली पीढ़ी का सही शिक्षण

हमारी भावी पीढ़ी को प्रेरित करना और उसका निर्माण करना हमारे हाथों में है, लैंगिक रूढ़ियों और हिंसक आदर्शों को चुनौती देनी पड़ेगी |

जो बच्चे मीडिया में, सड़कों पर और स्कूल में मुठभेड़ करते हैं उन हर बच्चे को बताएं कि उनका परिवार उनके माता पिता का उनके जीवन में क्या महत्व है |

उनकी पसंद और नापसंद का सही आंकलन करें |

अब समय ऐसा गया है की जिस तरह हमारे देश में लड़कियों को तालीम दी जाती है की किस तरह लोगों का सम्मान करना चाहिए ,उनके आचार विचार पर ध्यान देना चाहिए उसी तरह लड़कों को भी यही तलम मिलनी चाहिए |

कड़े कानून और टेक्नोलॉजी


बलात्कार एक जघन्य अपराध है और हमारे समाज में बलात्कारियों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।


रेप को सिर्फ नियम-कायदों को थोपकर नहीं बल्कि कुछ ही समय में दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देकर रोकने की जरूरत है- ताकि कोई दोबारा ऐसे अपराध करने की हिम्मत करे।

हमें अधिक से अधिक फोरेंसिक लैब, उपकरण, एक अलग चैनल या फास्ट ट्रैक कोर्ट के साथ सिस्टम को सक्षम करना होगा जो सुनने के लिए 24/7 काम करेगा।

सभी उप-प्रणालियों को एक-दूसरे से जोड़ते हुए हमे प्रौद्योगिकी के इस युग में एक पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र की जरूरत है जो आपकी एफआईआर दर्ज करने और मामला बनाने तक का काम  1 घंटे के भीतर कर दे |

सजा के मामले में, भारत को बलात्कारियों को सार्वजनिक फांसी देनी चाहिए | सिस्टम को उन गैर-जिम्मेदार पुरुषों के बीच डर पैदा करने की जरूरत है जो इस तरह के अमानवीय अपराध करने से पहले परिणामों से डरते नहीं हैं।

निष्कर्ष

हमें बलात्कार होने से रोकने की आवश्यकता है। वर्तमान चरण में रोकथाम और दंड दोनों आवश्यक हैं और इसके लिए हमें सभी हितधारकों की ओर से संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है।

इसलिए, 2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार के बाद बहुत कुछ नहीं बदला जिसने वैश्विक आक्रोश और हिंसक सार्वजनिक विरोध उत्पन्न किया।

भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली राजनीतिक वजहों से दबाव में हे काम करती है |

दूसरी तरफ, हैदराबाद गैंगरेप मामले के दोषियों के एनकाउंटर से लोग हतप्रभ और खुश  थे।

आज मीडिया के आक्रोश के कारण, ऐसी किसी भी घटना के लिए रिपोर्टिंग की उच्च और बेहतर संभावनाएं हैं।

एक बदलाव ऐसे ही नहीं आता है। यदि हम एक समाज के रूप में एक साथ खड़े हैं तो हम अपनी अगली पीढ़ी के लिए बेहतर कल की उम्मीद कर सकते हैं। हमें अपने समाज का निर्माण उस तरह करना होगा जैसा हम चाहते हैं। हमें खुद भारत को अपनी महिलाओं के रहने के लिए एक बेहतर और सुरक्षित स्थान बनाना होगा।


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1 comment:

  1. Hum sabhi ko ek samaj ke roop me khade hona hai tabhi ek naye kal ki betiyon ko suraksha pradan kar sakte hain.
    Bahut achha likha hai praveen

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